वे जली बुझी रौशनियों की कतारें, वे रोशनियां जो कुछ लोगों का पूरा वजूद है शायद, वे रौशनियां जो किन्हीं के मकां-ओ-दूकां होंगे, सोचता हूं, क्या जुल्म है कि इंसान महज चंद चिरागों को अपनी तमाम उम्र का हासिल समझता है ©Sadanand Kumar #dilbechera #AzaadMann #DilKaSukoon #Nojoto #nojotonews #best_poetry #Hindi #ReachingTop