जो सोते हैं उनसे मैं अधम, मंजिल उनके घर के अंदर हैं गम। समान शाख़ी, समान हमदम, वीरान बसेरे में हैं हम। ©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) वीरान बसेरे में हम......