बहुत सोचा तुम्हें हमने, मगर कुछ कर नहीं पाये लकीरों मैं नहीं थीं तुम, तुम से मिल नहीं पाये मोहब्बत में कशिश तो थी, मगर थोड़ी सी उलझन थी तुम्हे चाहा बहुत हमने, तुम्हें हम जी नहीं पाये सड़क अन्जान पर हमने सफर तन्हा गुजारा है हर बढ़ते कदम पर हमने नाम तेरा पुकारा है कुछ बातें ,अधुरी थीं तुमसे कर नहीं पाये भगवान से मेरी बस इतनी गुजारिश है जो मुझको ना मिले वो तो ये सफर यहीं पे थम जाये बहुत सोचा तुम्हें हमने मगर कुछ कर नहीं पाये ✍✍अंकित पाठक ✍✍