रखें हैं संभालकर आज भी वो कुछ ख़त पुराने, करते हैं जो बयाँ, कुछ बीती बातों की दास्ताँ।। दो बात लिखते-लिखते, कैसे चार हो जाती थी, करती थी जो बयाँ, कुछ बीती रातों की दास्ताँ।। लिफाफों से आती आज भी भीनी-भीनी ख़ुशबू, करती है जो बयाँ, कुछ बीती यादों की दास्ताँ।। -संगीता पाटीदार रखें हैं संभालकर आज भी वो कुछ ख़त पुराने, करते हैं जो बयाँ, कुछ बीती बातों की दास्ताँ।। दो बात लिखते-लिखते, कैसे चार हो जाती थी, करती थी जो बयाँ, कुछ बीती रातों की दास्ताँ।। लिफाफों से आती आज भी भीनी-भीनी ख़ुशबू, करती है जो बयाँ, कुछ बीती यादों की दास्ताँ।।