नहीं मिलता हूं, किसी से आजकल मैं, खुद में ही खोया हूं कल तक मैं, भी बहुत हंसता था आज जोरों से रोया हूं नहीं मिलता हूं........ जब उठने लगा जनाजा मेरे सब्र का जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा था उसी ने सबसे पहले मेरे जनाजे पर कफ़न चढ़ाया था जब तक जरूरत थी हर किसी ने मुझको अपनाया था जब हुई जरूरत खत्म हर किसी ने मुझको दफनाया था नहीं मिलता हूं...... कैसे भूल गया मैं, जमाने की हकीकत कैसे मैंने किसी और को, गले लगाया था छोड़ दिया मेरा साथ सबने आखिर ये मेरा ही दिल था, जिसने मुझे फिर से अपनाया था ©Asheesh indian नहीं मिलता हूं, किसी से आजकल मैं, खुद में ही खोया हूं कल तक मैं, भी बहुत हंसता था आज जोरों से रोया हूं नहीं मिलता हूं........ जब उठने लगा जनाजा मेरे सब्र का जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा था