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लाय-मुढ़ी, तिल के लड्डू और धूप की हल्की हल्की गर्मी

लाय-मुढ़ी, तिल के लड्डू और धूप की हल्की हल्की गर्मी,
सरसों औऱ लहसुन के तेल दादी की गोदी औऱ उसके हाथों की नरमी।।
 सर्दी को बस मौसम कहना अनुचित होगा। आज जब अपनी बचपन की सर्दी याद करता हूँ तो नाक लाल हो जाती है मेरी। मेरी माँ कहती थी जब में बच्चा था दादी अपनी गोद में मुझ नालायक को सुला कर घण्टो मालिश करती रहती थी। दादाजी मुझे अपने राजाई में लपेट कर कहानियां सुनाया करते थे। बाबूजी के साथ बैठकर पुवाल के घुड़े में सकरकन(मीठी आलू) पका कर खाया करता था। माँ कभी खिचड़ी , कभी चावल वाली बगिया( पिट्ठा) बना कर गरम गरम खिलाया करती थी। कई मीलों दूर मेरे ननीहाल से मेरे नानाजी बोरे में मुढ़ी, चूड़ा और तिल का लाय लाया करते थे अपने साइकिल में बांध कर। आज जब बाज़ार में अपना एक घर है तो वो सब नहीं है, बुजुर्गों के हाथ, बाबूजी का साथ, न मीठी आलू, न पुआल के घुड़े कुछ भी नहीं। बस उन यादों का फोल्डर बनाकर अपने दिल के ड्राइव में सेव करके रख दिया है मैंने। बस हर सर्दी में इसे प्ले करके  खुश हो लेता हूँ।।
#yqbaba #yqdidi #yqhindi #village #parents #love #winter #quote
लाय-मुढ़ी, तिल के लड्डू और धूप की हल्की हल्की गर्मी,
सरसों औऱ लहसुन के तेल दादी की गोदी औऱ उसके हाथों की नरमी।।
 सर्दी को बस मौसम कहना अनुचित होगा। आज जब अपनी बचपन की सर्दी याद करता हूँ तो नाक लाल हो जाती है मेरी। मेरी माँ कहती थी जब में बच्चा था दादी अपनी गोद में मुझ नालायक को सुला कर घण्टो मालिश करती रहती थी। दादाजी मुझे अपने राजाई में लपेट कर कहानियां सुनाया करते थे। बाबूजी के साथ बैठकर पुवाल के घुड़े में सकरकन(मीठी आलू) पका कर खाया करता था। माँ कभी खिचड़ी , कभी चावल वाली बगिया( पिट्ठा) बना कर गरम गरम खिलाया करती थी। कई मीलों दूर मेरे ननीहाल से मेरे नानाजी बोरे में मुढ़ी, चूड़ा और तिल का लाय लाया करते थे अपने साइकिल में बांध कर। आज जब बाज़ार में अपना एक घर है तो वो सब नहीं है, बुजुर्गों के हाथ, बाबूजी का साथ, न मीठी आलू, न पुआल के घुड़े कुछ भी नहीं। बस उन यादों का फोल्डर बनाकर अपने दिल के ड्राइव में सेव करके रख दिया है मैंने। बस हर सर्दी में इसे प्ले करके  खुश हो लेता हूँ।।
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murlibhagat7860

Murli Bhagat

New Creator

सर्दी को बस मौसम कहना अनुचित होगा। आज जब अपनी बचपन की सर्दी याद करता हूँ तो नाक लाल हो जाती है मेरी। मेरी माँ कहती थी जब में बच्चा था दादी अपनी गोद में मुझ नालायक को सुला कर घण्टो मालिश करती रहती थी। दादाजी मुझे अपने राजाई में लपेट कर कहानियां सुनाया करते थे। बाबूजी के साथ बैठकर पुवाल के घुड़े में सकरकन(मीठी आलू) पका कर खाया करता था। माँ कभी खिचड़ी , कभी चावल वाली बगिया( पिट्ठा) बना कर गरम गरम खिलाया करती थी। कई मीलों दूर मेरे ननीहाल से मेरे नानाजी बोरे में मुढ़ी, चूड़ा और तिल का लाय लाया करते थे अपने साइकिल में बांध कर। आज जब बाज़ार में अपना एक घर है तो वो सब नहीं है, बुजुर्गों के हाथ, बाबूजी का साथ, न मीठी आलू, न पुआल के घुड़े कुछ भी नहीं। बस उन यादों का फोल्डर बनाकर अपने दिल के ड्राइव में सेव करके रख दिया है मैंने। बस हर सर्दी में इसे प्ले करके खुश हो लेता हूँ।। #yqbaba #yqdidi #yqhindi #village #PARENTS love #Winter #Quote