भूल गये या ग्यात नहीं, मुझमें कोई ग्यान नहीं। घिरा हूँ असमंजस में, ये मेरी पहचान नहीं। खोज शुन्य की याद नहीं, क्या आयूर्वेद ध्यान नहीं। हो रही मिट्टी पूर्वजों की अमानत, ये मेरी पहचान नहीं। मुझमें वेदों का ग्यान नहीं, भाषा अपनी का मान नहीं। खिल रही पश्चिम की ज्वाला ये मेरी पहचान नहीं। अग्नि हृदय में दहक रही, देश वही समाज वही। भूल गये या ग्यात नहीं, ये मेरी पहचान नहीं। ये मेरी पहचान नहीं......! ©Ek tannha shayar #मेरी_पहचान #My_filings_my_words #एक_तन्हा_शायर #Books