" पत्रकार की आवाज " सरकार का फर्ज तो लगता है। पत्रकारिता निभा रही हैं। दिन रात खड़े रहकर सड़कों पर। अपने नींद और चैन गँवा रही है। जग मे होता कुकर्म और मरा हुआ सिस्टम इस समाज को दिखा रही है। जिस दर्द का अनुभव सरकार कर नहीं सकती। पत्रकारिता उसे बखूबी, बयां कर पा रही है। जहां न्यायपालिका और सरकार, नेत्रहीन और बहरी हो चुकी हैं। वहाँ पत्रकारिता आंखें और आवाज बनकर। सड़े हुए सिस्टम के, कानों में, चिल्ला रही है। सरकार का फर्ज तो लगता है। पत्रकारिता ने भा रही है। ©Umang gangania #पत्रकारकीआवाज #धन्यवाद #पत्रकार #पत्रकारिताकाधन्यवाद