Vote ना जाने कब से ,एक महफिल ए सवा ढूंढ रहा हूं। दो सास ,बेजहर की हवा ढूंढ रहा हूं। रिस्तो ने उजाड़ा है मेरा सहरे दिलेसा, में रिश्तो के बिखरन में वफ़ा ढूंढ रहा हूं। हैरान हूं मैं आजकल नादानी पर अपनी, कातिल की आखों मैं जो दुआ ढूंढ रहा हूं। ©sasisya vidrohi #दुआ_लफ़्ज़ोंसे