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#Alap सामने उसके कहाँ कुछ भी छुपा पाता हूँ सीधा म

#Alap सामने उसके कहाँ कुछ भी छुपा पाता हूँ 
सीधा मुजरिम हूँ, हरेक बार सज़ा पाता हूँ! 

रोज़ पढ़ता हूँ तेरे ख़त को नई हैरत से 
रोज़ इक लफ़्ज़ जुड़ा उसमें नया पाता हूँ! 

सात तालों में करूँ बंद ख़यालों को मगर 
आँख खुलती है तो दरवाज़ा खुला पाता हूँ!

#Alap सामने उसके कहाँ कुछ भी छुपा पाता हूँ सीधा मुजरिम हूँ, हरेक बार सज़ा पाता हूँ! रोज़ पढ़ता हूँ तेरे ख़त को नई हैरत से रोज़ इक लफ़्ज़ जुड़ा उसमें नया पाता हूँ! सात तालों में करूँ बंद ख़यालों को मगर आँख खुलती है तो दरवाज़ा खुला पाता हूँ!

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