मुस्लिमो की आवाज हूं मोमिन मैं हिंद की तकदीरे निशा पड़ता हूं मुश्किल में जब खोलूं जुबा। हैं रखना नहीं बैर किसी से यहां हमको हमने मोहब्बत से जीती है जमी जीता है आसमा। होता हूं मायूस जब टूटे कोई भी इबादतगाह हो मेरी वो मस्जिद या तेरी बूतकदा। यह दौर है मुश्किल,मुश्किल है इस दौर से गुजरना आज अपने ही मुल्क में हूं मैं परेशा। इसी से जन्म पाया है इसी में फना हो जाएंगे कयामत तक इसी जमीन को कहेंगे अपनी मां। Voice of Muslims