घूंँघट की आड़ (लघुकथा) अनुशीर्षक में👇👇:// बात उन दिनों की है जब भारत देश में छोटे से उम्र में विवाह कर दी जाती थी। मेरी दादी का भी 13 साल की उम्र में मेरे दादाजी के साथ जो ख़ुद 15 साल के थे विवाह हो गया था और ढाई साल बाद गौना कर के दादाजी के साथ अपने ससुराल यानी हमारे घर चली आईं। खेलने कूदने और पढ़ने के उम्र में वो दांपत्य जीवन जीने लगी। एक दिन दादाजी से उन्होंने कहा की मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, तो दादाजी ने घर वालों के चुपके से उन्होंने गांँव के पाठशाला में प्रवेश दिला दिया और दादी से बोला की तुम हमें अपने घूंँघट से पूरा चेहरा ढक कर मेरे साथ चलना। दादी ने कहा की घर वाले पूछेंगे कि कहांँ रोज़ रोज़ जा रहे हैं तो क्या जवाब देंगे। दादाजी बोले कि जब वक्त आएगा तो सब समझा दूँगा। और अब वो दादाजी के साथ पढ़ने जाने लगीं। एक दिन घर की बाई फूलमती ने दादाजी को दादाजी को पाठशाला की गेट पर छोड़ते हुए देख लिया, हुआ यूंँ कि दादी अपना घूंँघट उठा कर उनको मुस्कुराते हुए अंदर जाने की अनुमति माँग रही थीं। फिर क्या था फूलमती तुरंत घर पर आकर हमारी परदादी से नमक मिर्च लगाकर शिकायत करने लगी। शाम को दोनों लोगों को बुला कर बोली कि ये सब कबसे चल रहा है और घूंँघट का अच्छा फ़ायदा उठाया। दादाजी ने बोला कोई फ़ायदा नहीं उठाया बस समय के साथ पढ़ाई को महत्व दिया ताकि वो पढ़ सकें। वो मेरी धर्मपत्नी हैं, मैं चाहता हूं कि वो आगे पढ़ लिख कुछ काम करें जिससे आने वाली पीढ़ियों को वो स्वंय देख सकें। परदादी दादाजी से काफ़ी बहस करने के बाद वो उनकी बात मान गईं और बस इतना बोली कि घूंँघट की आड़ में अच्छे सोच को जन्म दिया ताकि हर घर की स्त्री अब पढ़ना लिखना शुरू कर दे। #kkpc26 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkdrpanchhisingh1