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आज हमारा सिर शर्म से झुक गया है! हमारी संवैधानिक ए

आज हमारा सिर शर्म से झुक गया है!
हमारी संवैधानिक एजेंसियां
अपने यहां की जन समस्याओं,
विशेषकर कानून व्यवस्था,
बेरोजगारी, भ्रष्टाचार ,
बलात्कार आदि से
कारगर ढंग से निपट नहीं पाई।
यह भी कह सकते हैं कि
नाकारा साबित हो गईं।
पुलिस, न्यायपालिका,
लोकायुक्त,
राज्य मानव अधिकार आयोग
जैसे भारी-भरकम स्तम्भ
जाने-अनजाने कारणों से
चरमराते जान पड़ रहे हैं। मेरा तो आजकल कुछ भी लिखने का मन ही नहीं कर रहा!
अखबारों में पढ़कर या सोसल साइट्स ,या मीडिया में बलात्कार ही बलात्कार का हाहाकार मचा है ।
जैसे प्रतिस्पर्धा हो रही है कोई एक मामला शान्त नही होता तब तक दूसरा हो जाता है।
देश के हर कौने शहरों के बीचों बीच,गांव,ढांडियो में भी ये महामारी फैल रही है ।
चारौ ओर से रोते बिलापते लोग,सरकार को दुत्कारते,जुलूस,मोमबत्ती जिसको भी जो लगा प्रयास कर रहा है लेकिन देश को कुछ भी संतोषजनक उम्मीद अभी भी दिखाई नही दे रही ।
मुझे याद है ये सिलसिला दामिनी ( 2012 ) दिसम्बर माह से शुरू हुआ और हजारों लड़कियों को अब तक निग़ल गया ।
:
किसके भरोसे महिला?
आज हमारा सिर शर्म से झुक गया है!
हमारी संवैधानिक एजेंसियां
अपने यहां की जन समस्याओं,
विशेषकर कानून व्यवस्था,
बेरोजगारी, भ्रष्टाचार ,
बलात्कार आदि से
कारगर ढंग से निपट नहीं पाई।
यह भी कह सकते हैं कि
नाकारा साबित हो गईं।
पुलिस, न्यायपालिका,
लोकायुक्त,
राज्य मानव अधिकार आयोग
जैसे भारी-भरकम स्तम्भ
जाने-अनजाने कारणों से
चरमराते जान पड़ रहे हैं। मेरा तो आजकल कुछ भी लिखने का मन ही नहीं कर रहा!
अखबारों में पढ़कर या सोसल साइट्स ,या मीडिया में बलात्कार ही बलात्कार का हाहाकार मचा है ।
जैसे प्रतिस्पर्धा हो रही है कोई एक मामला शान्त नही होता तब तक दूसरा हो जाता है।
देश के हर कौने शहरों के बीचों बीच,गांव,ढांडियो में भी ये महामारी फैल रही है ।
चारौ ओर से रोते बिलापते लोग,सरकार को दुत्कारते,जुलूस,मोमबत्ती जिसको भी जो लगा प्रयास कर रहा है लेकिन देश को कुछ भी संतोषजनक उम्मीद अभी भी दिखाई नही दे रही ।
मुझे याद है ये सिलसिला दामिनी ( 2012 ) दिसम्बर माह से शुरू हुआ और हजारों लड़कियों को अब तक निग़ल गया ।
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किसके भरोसे महिला?