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।।सुन्दर-सी चिड़िया।। ह्म्म,.....एक थी सुन्दर-सी चि

।।सुन्दर-सी चिड़िया।।
ह्म्म,.....एक थी सुन्दर-सी चिड़िया..
मैं आता और एक नजर देखा करता था,
लगता था वो चिड़िया कुछ कहना चाहती थी,
अपनी छोटी सी आंखो के भावों को बताना चाहती थी।
मैं व्यस्त सा चल पड़ता था नज़र चुराकर,
वो..........वो लगता था मुझे पुकारती थी,
तीखी-तीखी सी आँवाज से चहचहाती थी!
.......मुझे लगता था पहचानती है,
मैं हँस कर गुजर जाता था पास से,
क्यों कि निर्दयता जैसे अवगुण मेरे साथ थे।
हर बार समय से आगे रहती थी वह चिड़िया,
रोज मुझे उस ओर जाते रोक लेती थी वह चिड़िया।
लगता था शायद वो.. फूल वाला पेड़ उसका नगर है,
देखा नहीं.. पर लगता था वहाँ उसका सुन्दर-सा घर है। सोचता था कितनी खुश है वह छोटी -सी चिड़िया,
कितनी भोली कितनी नादान है वह छोटी-सी चिड़िया।
मैंने कार्यालय से छुट्टी लेली थी,
तब कुछ दिन तक मैं वहाँ से नहीं गुजरता था।
गुजरने लगा अब तो वह जगह सुनसान थी,
पता नहीं अब वो कहाँ है सोच बड़ी अनजान थी।
मै गया उस सुन्दर फूलों वाले पेड़ के पास,
देखा.....देखा कुछ पंख पड़े है बिखरे हुए,
ऊपर नजर गई तो डाल पर सांप बैठा है पसरे हुए।
अब मुझे वह पेड़ स्वर्ग-सा नर्क लगता था,
कुछ जिन्दगीयों को निगल गया था वह पेड़।
काश....समझ जाता जो कहती थी वह चिड़िया,
तो सुन्दर से सपने लिये जिन्दा होती वह चिड़िया।
अभी भी आती है वो चिड़िया सपने में जब सोता हूँ,
हर बार वहाँ से गुजरता हूँ तब रोता हूँ।
का......श जिन्दा होती वो चिड़िया..........,
एक थी सुन्दर-सी चिड़िया।।

©MAHENDRA SINGH #एक_सुन्दर_सी_चिड़िया
।।सुन्दर-सी चिड़िया।।
ह्म्म,.....एक थी सुन्दर-सी चिड़िया..
मैं आता और एक नजर देखा करता था,
लगता था वो चिड़िया कुछ कहना चाहती थी,
अपनी छोटी सी आंखो के भावों को बताना चाहती थी।
मैं व्यस्त सा चल पड़ता था नज़र चुराकर,
वो..........वो लगता था मुझे पुकारती थी,
तीखी-तीखी सी आँवाज से चहचहाती थी!
.......मुझे लगता था पहचानती है,
मैं हँस कर गुजर जाता था पास से,
क्यों कि निर्दयता जैसे अवगुण मेरे साथ थे।
हर बार समय से आगे रहती थी वह चिड़िया,
रोज मुझे उस ओर जाते रोक लेती थी वह चिड़िया।
लगता था शायद वो.. फूल वाला पेड़ उसका नगर है,
देखा नहीं.. पर लगता था वहाँ उसका सुन्दर-सा घर है। सोचता था कितनी खुश है वह छोटी -सी चिड़िया,
कितनी भोली कितनी नादान है वह छोटी-सी चिड़िया।
मैंने कार्यालय से छुट्टी लेली थी,
तब कुछ दिन तक मैं वहाँ से नहीं गुजरता था।
गुजरने लगा अब तो वह जगह सुनसान थी,
पता नहीं अब वो कहाँ है सोच बड़ी अनजान थी।
मै गया उस सुन्दर फूलों वाले पेड़ के पास,
देखा.....देखा कुछ पंख पड़े है बिखरे हुए,
ऊपर नजर गई तो डाल पर सांप बैठा है पसरे हुए।
अब मुझे वह पेड़ स्वर्ग-सा नर्क लगता था,
कुछ जिन्दगीयों को निगल गया था वह पेड़।
काश....समझ जाता जो कहती थी वह चिड़िया,
तो सुन्दर से सपने लिये जिन्दा होती वह चिड़िया।
अभी भी आती है वो चिड़िया सपने में जब सोता हूँ,
हर बार वहाँ से गुजरता हूँ तब रोता हूँ।
का......श जिन्दा होती वो चिड़िया..........,
एक थी सुन्दर-सी चिड़िया।।

©MAHENDRA SINGH #एक_सुन्दर_सी_चिड़िया