दया, धर्म, सद्भावना दम तोड़ रही अब तो पढ़ा-लिखा समाज,अनपढ़ बना, मार रहा एक-दूजे को धर्म निरपेक्षता की चादर ओढ़, देख रहा तमाशा सबका मरता है जो मरता रहे,बचा रहा वह ख़ुद को कीड़े-मकौड़े से हो गये इंसान अब तो कुचल रहा 'राजनीति का दैत्य' जिनको दरिंदगी और वहशीपन सवार अब मन पर मानव-धर्म सब भूल ,नफ़रत धर्म निभा रहे अब तो कारण किसी को पता नहीं,क्यूँ आपस में घर उजाड़ रहे किस 'मदारी' के इशारे पर 'बन्दर-से' नाच रहे भूल भाईचारा सब, वैमनश्य की आग में जल रहे दूसरों को तो मार रहे, ख़ुद भी कहाँ बच रहे दया,धर्म और सद्भावना टँगी अब खूँटी पर पढ़ा-लिखा समाज यह ,बढ़ रहा किस दुर्गति को..! Muनेश...Meरी✍️ सुप्रभात। दया, धर्म, सद्भावना हो अपनी शुभकामना। #दयाधर्म #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi