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ईश नेत्र नम होते ही कुदरत कुपित हुई भव पर। कहीं बे

ईश नेत्र नम होते ही कुदरत कुपित हुई भव पर।
कहीं बेमौसम बारिश बरसे,तो प्यासे पानी को तरसे ।
नदी उफ़नती विष उगले,जीवन की कश्ती डूब चली!
दुनिया में हाहाकार मचे ,कर त्राहि त्राहि जीवन भटके।
हे धरती माँ ! प्रकृति माँ अब तुम ही नैया पार करो।
तुमसे ही अपना जीवन है,अब तू ही दुःख सँहार करे ।
हे वसुधा अपने आँचल से काँटों को चुन चुन दूर करो ।
दामन में फूल खिलाकर तुम मानव जाति की ढाल बनो ।
माँ हो ममता का वरण करें , उपकारी हो चरितार्थ करें । #collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़
#हमलिखतेरहेंगे
#गुलिस्ताँ
#yqdidi
 #yqbaba      #YourQuoteAndMine
Collaborating with Shelly Jaggi
ईश नेत्र नम होते ही कुदरत कुपित हुई भव पर।
कहीं बेमौसम बारिश बरसे,तो प्यासे पानी को तरसे ।
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दुनिया में हाहाकार मचे ,कर त्राहि त्राहि जीवन भटके।
हे धरती माँ ! प्रकृति माँ अब तुम ही नैया पार करो।
तुमसे ही अपना जीवन है,अब तू ही दुःख सँहार करे ।
हे वसुधा अपने आँचल से काँटों को चुन चुन दूर करो ।
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