नवरात्रि हमेशा बदलते मौसम के साथ ही आती हैं। मौसम बदलाब के साथ कई रोग भी लाता है। इन दिनों में हम देख सकते हैं कि- दिन भर कड़ी धूप रहती है और रातें ठण्डी। जठराग्नि मन्द होने लगती है। भूख कम हो जाती है। मन में अजीव सी बेचैनी और मायूसी- कुछ न करने का मन करना। नींद आना लेट उठना सामान्यत होता है। सहजता से इन विकारों से बचने के लिए- हमारे पुरखों ने नवरात्रियों को चुना और- व्रत, उपासना और उपवास की अवधारणा का विकास किया। समय के साथ ये परम्परागत हो गया। कैप्शन- देखें नवरात्रि- उपासना,व्रत और उपवास उपासना- का सीधा अर्थ समीप बैठना होता है। जैसे हम किसी के प्रेम में पड़कर उसकी छोटी छोटी बातों को ध्यान में रखते हैं।कभी कभी एक ही बात को एक ही वक्त में दोनों एक साथ कहते हैं।एक दूसरे के लिए बेचैन होते हैं।सुबह से लेकर सोने तक भले ही उससे बात न करें पर मन से जुड़ जाते हैं।यही उपासना कहलाती है। व्रत- संकल्प का पर्यायवाची शब्द है।अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए समर्पित हो जाना ही व्रत कहलाता है।व्रत लिया जाता है।धारण किया जाता है।यह परीक्षा पूर्व की तैयारी में जुटने का माध्यम है।