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ना जाने क्या अजीब दास्तान तेरे मेरे रिश्ते की....!

ना जाने क्या अजीब दास्तान तेरे मेरे रिश्ते की....!
रुह मिली रुह से है ओर दुआ करते मिलने की...!
मंज़िल तो एक है पता नहीं हमें गुजारगाह की...!
हर लम्हा पास ओर वक्त से गुज़ारिश साथ की...! 👉🏻 प्रतियोगिता- 234

 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🌹"अजीब दास्तान"🌹 

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
ना जाने क्या अजीब दास्तान तेरे मेरे रिश्ते की....!
रुह मिली रुह से है ओर दुआ करते मिलने की...!
मंज़िल तो एक है पता नहीं हमें गुजारगाह की...!
हर लम्हा पास ओर वक्त से गुज़ारिश साथ की...! 👉🏻 प्रतियोगिता- 234

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🌹"अजीब दास्तान"🌹 

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
purvishah8999

purvi Shah

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