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............. यह अपेक्षाएं सब उपेक्षाओं

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      यह अपेक्षाएं सब उपेक्षाओं का कारण बनी हमेशा.,. और मुझे रहना था तटस्थ,. यह अल्प निर्वाण मेरे  जीवन में खड़ी करता गया एक ऐसी दीवार जो नहीं दरक सकती कभी भी किसी पहाड़ सी,..भूसखलन होने पर भी..

मैंने अपने जीवन में केवल और केवल ऊँचे कभी नंगे तो कभी हरे - भरे पहाड़  देखे हैं नदियां देखी हैं,. नहीं देखे पठार और समंदर,. मन के साथ - साथ आँखों ने भी किया है विचरण,  प्रकृति ने आंशिक तौर पर मुझे प्रभावित किया है मैंने अपने आस - पास के वातावरण को महसूस किया है उसे जिया है एक अदृश्य ऊर्जा को जिसके कण हमेशा ही मेरे इर्द -गिर्द मंडरा रहे होते हैं,.

   ऐसा प्रतीत होता है,.जैसे मैं हूँ स्वंय सौरमण्डल,. कभी स्वंय सूर्य बन जाती हूँ करती परिभ्रमण तो कभी ग्रह कोई करता परिक्रमण,. लड़ती स्वंय से कभी तो कभी करती स्वंय पर अतिक्रमण,.

    महसूस करती हूँ घिरा हुआ स्वंय को अनेकों आकाशगँगाओं से,. निर्मित होती वह जो निहारिकाओं से नक्षत्र अल्फा मैं,.
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      यह अपेक्षाएं सब उपेक्षाओं का कारण बनी हमेशा.,. और मुझे रहना था तटस्थ,. यह अल्प निर्वाण मेरे  जीवन में खड़ी करता गया एक ऐसी दीवार जो नहीं दरक सकती कभी भी किसी पहाड़ सी,..भूसखलन होने पर भी..

मैंने अपने जीवन में केवल और केवल ऊँचे कभी नंगे तो कभी हरे - भरे पहाड़  देखे हैं नदियां देखी हैं,. नहीं देखे पठार और समंदर,. मन के साथ - साथ आँखों ने भी किया है विचरण,  प्रकृति ने आंशिक तौर पर मुझे प्रभावित किया है मैंने अपने आस - पास के वातावरण को महसूस किया है उसे जिया है एक अदृश्य ऊर्जा को जिसके कण हमेशा ही मेरे इर्द -गिर्द मंडरा रहे होते हैं,.

   ऐसा प्रतीत होता है,.जैसे मैं हूँ स्वंय सौरमण्डल,. कभी स्वंय सूर्य बन जाती हूँ करती परिभ्रमण तो कभी ग्रह कोई करता परिक्रमण,. लड़ती स्वंय से कभी तो कभी करती स्वंय पर अतिक्रमण,.

    महसूस करती हूँ घिरा हुआ स्वंय को अनेकों आकाशगँगाओं से,. निर्मित होती वह जो निहारिकाओं से नक्षत्र अल्फा मैं,.
alpanabhardwaj6740

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