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कांच की तरह चुभते लफ्जों से, पल पल मेरे दिल से लह

कांच की तरह चुभते लफ्जों से, 
पल पल मेरे दिल से लहू रिस्ता रहा,,
 गुनाह-ऐ- इश्क में रकीब तो बेगुनाह है 
बस हर दफ़ा देव पिसता रहा

कोई नजूमी फरिश्ता नहीं मैं 
जो दो पल की दुआओं में तुझे पा जाऊं  ,,
हासिल तो तू उस अलादीन को भी नहीं 
जो ताउम्र चिराग घिसता रहा।।

©Dev choudhary
  #ujala