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कहानी पलंग की :: मैं एक पलंग हूं । मेरे चार पैर म

कहानी पलंग की ::

मैं एक पलंग हूं । मेरे चार पैर मेरे जीने का सहारा हैं । मनुष्य का जीवन चक्र मुझसे ही जुड़ा है । जब एक बच्चा जन्म लेता है तो मुझे उसके रोने कि आवाज आती है । जब बच्चा बिस्तर गीला करता है तो मुझे गीलेपन का अहसास होता है । फिर वो बच्चा धीरे धीरे जब यौवन अवस्था में आता है तब मैं उसके शरीर में उमड़ती अंगड़ाईयों को महसूस करता हूं । मैं उसके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव यानी सुहागरात में सिमटी चादर का गवाह हूं । जब फिर एक बच्चा जन्म लेता है तो फिर से मुझे रोने की आवाज आती है । पति पत्नी के लड़ाई झगडे़, प्यार मोहब्बत को क़रीब से महसूस करता हूं । जब वो दुनियां से रुखसत हो जाते हैं तब उस बच्चे का हो जाता हूं जिसने जन्म लिया था । पेश है एक कहानी पलंग की ::

मैं एक पलंग हूं । मेरे चार पैर मेरे जीने का सहारा हैं । मनुष्य का जीवन चक्र मुझसे ही जुड़ा है । जब एक बच्चा जन्म लेता है तो मुझे उसके रोने कि आवाज आती है । जब बच्चा बिस्तर गीला करता है तो मुझे गीलेपन का अहसास होता है । फिर वो बच्चा धीरे धीरे जब यौवन अवस्था में आता है तब मैं उसके शरीर में उमड़ती अंगड़ाईयों को महसूस करता हूं । मैं उसके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव यानी सुहागरात में सिमटी चादर का गवाह हूं । जब फिर एक बच्चा जन्म लेता है तो फिर से मुझे रोने की आवाज आती है । पति पत्नी के लड़ाई झगडे़, प्यार मोहब्बत को क़रीब से महसूस करता हूं । जब वो दुनियां से रुखसत हो जाते हैं तब उस बच्चे का हो जाता हूं जिसने जन्म लिया था ।
© Ritu Raj Gupta 

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कहानी पलंग की ::

मैं एक पलंग हूं । मेरे चार पैर मेरे जीने का सहारा हैं । मनुष्य का जीवन चक्र मुझसे ही जुड़ा है । जब एक बच्चा जन्म लेता है तो मुझे उसके रोने कि आवाज आती है । जब बच्चा बिस्तर गीला करता है तो मुझे गीलेपन का अहसास होता है । फिर वो बच्चा धीरे धीरे जब यौवन अवस्था में आता है तब मैं उसके शरीर में उमड़ती अंगड़ाईयों को महसूस करता हूं । मैं उसके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव यानी सुहागरात में सिमटी चादर का गवाह हूं । जब फिर एक बच्चा जन्म लेता है तो फिर से मुझे रोने की आवाज आती है । पति पत्नी के लड़ाई झगडे़, प्यार मोहब्बत को क़रीब से महसूस करता हूं । जब वो दुनियां से रुखसत हो जाते हैं तब उस बच्चे का हो जाता हूं जिसने जन्म लिया था । पेश है एक कहानी पलंग की ::

मैं एक पलंग हूं । मेरे चार पैर मेरे जीने का सहारा हैं । मनुष्य का जीवन चक्र मुझसे ही जुड़ा है । जब एक बच्चा जन्म लेता है तो मुझे उसके रोने कि आवाज आती है । जब बच्चा बिस्तर गीला करता है तो मुझे गीलेपन का अहसास होता है । फिर वो बच्चा धीरे धीरे जब यौवन अवस्था में आता है तब मैं उसके शरीर में उमड़ती अंगड़ाईयों को महसूस करता हूं । मैं उसके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव यानी सुहागरात में सिमटी चादर का गवाह हूं । जब फिर एक बच्चा जन्म लेता है तो फिर से मुझे रोने की आवाज आती है । पति पत्नी के लड़ाई झगडे़, प्यार मोहब्बत को क़रीब से महसूस करता हूं । जब वो दुनियां से रुखसत हो जाते हैं तब उस बच्चे का हो जाता हूं जिसने जन्म लिया था ।
© Ritu Raj Gupta 

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