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ना भूलूंगा भागीरथी मैं यह उपकार तेरा ।

ना भूलूंगा भागीरथी मैं यह उपकार तेरा ।                                     मुझअधम पापी को तुमने दिया निकट बसेरा ।।  

                            क्या महिमा मैं गाऊँ तुम्हारी  गा ना पाया कोई।                          निजी निर्मल पावन जल से तुम सब के पाप धोई।।     

                क्यों न हो यह महिमा तेरी प्रकटी विष्णुपद से।                           जिन चरणों का आश्रय लेकर तरते लोग भव हैं से।।    

           कृतकृत्य हुआ उपकार से तेरे मां भगवती हे गंगे।                          निज चरणों से दूर न करना रखना अपने संगें।।   




                     विनती तुझसे एक और है कृपा तू इतनी कर दे।                          जिन चरणों से प्रकटी मां तुम उन चरणों में धार दें ।।   

               "अमित "वंदन करता हूं मां चरणों में मैं तेरे।                                     हर ले मैयां  जितने भी हैं दुरितों को तू मेरे।।

                         
                                                        विद्यार्थी अमितोपाध्यायः गंगा
ना भूलूंगा भागीरथी मैं यह उपकार तेरा ।                                     मुझअधम पापी को तुमने दिया निकट बसेरा ।।  

                            क्या महिमा मैं गाऊँ तुम्हारी  गा ना पाया कोई।                          निजी निर्मल पावन जल से तुम सब के पाप धोई।।     

                क्यों न हो यह महिमा तेरी प्रकटी विष्णुपद से।                           जिन चरणों का आश्रय लेकर तरते लोग भव हैं से।।    

           कृतकृत्य हुआ उपकार से तेरे मां भगवती हे गंगे।                          निज चरणों से दूर न करना रखना अपने संगें।।   




                     विनती तुझसे एक और है कृपा तू इतनी कर दे।                          जिन चरणों से प्रकटी मां तुम उन चरणों में धार दें ।।   

               "अमित "वंदन करता हूं मां चरणों में मैं तेरे।                                     हर ले मैयां  जितने भी हैं दुरितों को तू मेरे।।

                         
                                                        विद्यार्थी अमितोपाध्यायः गंगा