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मगन भई घट अंतर लग कर, गह कर शब्द की धारा । रैन दिव

मगन भई घट अंतर लग कर, गह कर शब्द की धारा ।
रैन दिवस मोहिं कूका देता, मेरा  स्वामी  प्यारा ।।टेर।।

नहीं और को संग में चाहता, ऐसा है भरतारा ।
वरता है उस सूरत को, तजे काल माया की धारा (1)

अविनाशी स्वामी मिल जाये, को करे नश्वर प्यारा ।
दिव्य दृष्टि से देख चुकी मैं, जगत है बना असारा (2)

स्वारथ बस सब प्रीत करे, रखते ऊपर व्यवहारा ।
जब मौका आकर गिर जाये, सब कर लेत किनारा (3)

स्वामी मेरा मैं स्वामी की, ऐसा व्रत हैं धारा ।
नहीं और अब याद करूँ मैं,
                             राधास्वामी  रहूँ  पुकारा (4)

                  *राधास्वामी*               
राधास्वामी प्रीति बानी 5--88 स्वामी मेरा मैं स्वामी की ।
मगन भई घट अंतर लग कर, गह कर शब्द की धारा ।
रैन दिवस मोहिं कूका देता, मेरा  स्वामी  प्यारा ।।टेर।।

नहीं और को संग में चाहता, ऐसा है भरतारा ।
वरता है उस सूरत को, तजे काल माया की धारा (1)

अविनाशी स्वामी मिल जाये, को करे नश्वर प्यारा ।
दिव्य दृष्टि से देख चुकी मैं, जगत है बना असारा (2)

स्वारथ बस सब प्रीत करे, रखते ऊपर व्यवहारा ।
जब मौका आकर गिर जाये, सब कर लेत किनारा (3)

स्वामी मेरा मैं स्वामी की, ऐसा व्रत हैं धारा ।
नहीं और अब याद करूँ मैं,
                             राधास्वामी  रहूँ  पुकारा (4)

                  *राधास्वामी*               
राधास्वामी प्रीति बानी 5--88 स्वामी मेरा मैं स्वामी की ।
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स्वामी मेरा मैं स्वामी की ।