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"ग़ज़ल-ए-बारिश" आज आगोश-ए-बारिश में भीगता शहर देखा

"ग़ज़ल-ए-बारिश"
आज आगोश-ए-बारिश में भीगता शहर देखा,
भीगती जवानियां ओ उन्मादी महशर देखा।

रोज तो जल रहे थे हम तपिश-ए-आफताब से,
आज उसी आफताब का बादलों में सफर देखा।

घोर सुनसान सा रहता था जो बागवान अक्सर,
आज उसी बागवान में खिलता गुलमोहर देखा।

सूखती टहनियां और खिजां से जो था आतंकित, 
आज पुनर्जन्म लिए वो हराभरा शज़र देखा।

इन ठंडी हवाओं से जो हुआ मौसम खुशनुमा,
इन्हीं हवाओं में पैगाम-ए-इश्क का पैगंबर देखा।

चाहे फुहार हो या फिर हो मूसलाधार बारिश,
हुस्न-ए-जाना का तिश्नगी जिस्म होते तरबतर देखा।

महक-ए-बारिश से जितना मदहोश हुआ है राही,
इश्किया ज़ाम से तेज मगर आशिकाना ज़हर देखा। #ग़ज़ल_ए_बारिश #आगोश_ए_बारिश बागवान   #खिजां  #उन्मादी_महशर
#हुस्न_ए_जाना #तिश्नगी_जिस्म
#महक_ए_बारिश     #तपिश_ए_आफ़ताब
"ग़ज़ल-ए-बारिश"
आज आगोश-ए-बारिश में भीगता शहर देखा,
भीगती जवानियां ओ उन्मादी महशर देखा।

रोज तो जल रहे थे हम तपिश-ए-आफताब से,
आज उसी आफताब का बादलों में सफर देखा।

घोर सुनसान सा रहता था जो बागवान अक्सर,
आज उसी बागवान में खिलता गुलमोहर देखा।

सूखती टहनियां और खिजां से जो था आतंकित, 
आज पुनर्जन्म लिए वो हराभरा शज़र देखा।

इन ठंडी हवाओं से जो हुआ मौसम खुशनुमा,
इन्हीं हवाओं में पैगाम-ए-इश्क का पैगंबर देखा।

चाहे फुहार हो या फिर हो मूसलाधार बारिश,
हुस्न-ए-जाना का तिश्नगी जिस्म होते तरबतर देखा।

महक-ए-बारिश से जितना मदहोश हुआ है राही,
इश्किया ज़ाम से तेज मगर आशिकाना ज़हर देखा। #ग़ज़ल_ए_बारिश #आगोश_ए_बारिश बागवान   #खिजां  #उन्मादी_महशर
#हुस्न_ए_जाना #तिश्नगी_जिस्म
#महक_ए_बारिश     #तपिश_ए_आफ़ताब