भाषा और व्यवहार ......................... भाषा के अंतर से अंतर व्यवहार में भी दिखता है। विदेशी भाषा में अब तो संस्कार भी ख़ूब बिकता है।। चाचा चाची मामा मामी सब अंकल आंटी हो गए। पहले होता था रिश्तों का मूल्य अब कमाया खाया सो गए।। जहाँ रस हुआ करता था कहा जाता था रसोई। अब जहाँ होती है किचकिच किचन कहते सब कोई।। जब तक यहाँ बहुत कम थी चलन में विदेशी भाषा। संस्कारों का अभाव नहीं था न फैली थी कोई निराशा।। चलन ने विदेशी भाषा के आभासी निकटता बढ़ाई। पर वास्तविक सम्बन्धों में इसने दूरियाँ ही बढ़ाई।। भले ही कुछ तंगी होती थी पर हृदय तो था धनवान। तब एक दूजे में दिखते थे एक दूजे को भगवान।। ✍️अवधेश कनौजिया© #hindi #हिंदी भाषा और व्यवहार ......................... भाषा के अंतर से अंतर व्यवहार में भी दिखता है। विदेशी भाषा में अब तो संस्कार भी ख़ूब बिकता है।।