शीर्षक- भूल बैठा हूँ... ये प्यार, इश्क, मोहब्बत जब हो गई उनसे, जब से उसको जाना है खुद को भूल बैठा हूँ, उसका नाम ले लेकर चलती हैं मेरी साँसें, उसे दिल में बसाया तो ये साँसें भूल बैठा हूँ| अब तो नींदों ने भी आँखों से कर ली है बगावत, कि उसके चेहरे से नज़रें हटाना भूल बैठा हूँ| उसकी बातें कर जाती हैं जाने कौन-सा जादू, किसी और को सुनना-सुनाना भूल बैठा हूँ| सुनो जब से लग गया है ये दिल मेरा उनसे, दिल कहता है अपना ही ठिकाना भूल बैठा हूँ| तुमसे मोहब्बत है कहा था उसने जब मुझसे, उसी पल से खुद को आजमाना भूल बैठा हूँ| उसे जब-जब मैं देखूँ खुद से पूछता हूँ ये कि, ऐसा क्या है उसमें कि ज़माना भूल बैठा हूँ| मुश्किलों ने आज़माया है कई बार आ-आकर, उसका साथ पाकर खौफ़ खाना भूल बैठा हूँ| उसने चाहा है मुझे रस्मों-रिवाजों से परे जाकर, क्या जमाना, क्या है खुदाई बताना भूल बैठा हूँ| उसकी चाहत में पाकीज़गी शामिल है इस कदर, पाकीज़ा मोहब्बत का हर फ़साना भूल बैठा हूँ| मुझे बस याद रहती है उसकी दीवानगी यारों, कि मैं भी हुआ था कभी दीवाना भूल बैठा हूँ| अपनी हर इक साँस मैं तो उसके साथ ही चाहूँ, जीवन और मृत्यु को अब आज़माना भूल बैठा हूँ| मीना सिंह "मीन" स्वरचित, नई दिल्ली ©Meena Singh Meen #भूलबैठाहूँ#meenwrites#love#life PoonaM TARIQ HASSAN KHAN Tammy Kaurs Arshad Siddiqui poor help plz