मत पूछो मैं कहाँ मिलता हूँ, उसके दिल की गहराइयों रहता हूँ जाग जाता हूँ सुबह उसकी अंगड़ाईयों में, रात उसकी बाहों तले सोता हूं कभी उसकी आँखों के काजल, कभी उसके होठों की लाली में मिलता हूं, जुल्फों के उसकी छाँव में कभी, कभी उसकी पायल सा खनकता हूं उसकी आवाज के नशे में बहकता हूं, उसकी हँसी संग मैं भी चहकता हूं उसकी खुशबू में महकता हूँ, उसकी अगन में दहकता हूं ढूढ़ना हो तो वही मिलूंगा कहीं, जब उसकी धड़कन में धड़कता हूं -आशु कहाँ रहता हूँ