लगता है मुझको कई बार, दिखता है नहीं, जो साफ-साफ। कोशिश करनी होगी-अदृश्य को जानने की मुझे बारम्बार। हंसमुख रिश्तों में छिपे हुए, सच को समझने की है बस दरकार। रहिमन धागा प्रेम का....!!!