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जाने कैसी तलब लगी है की अब तो कोई तलब नही है ! हो

जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !

होठों पर तो मुस्कान सजी और
आँखो में अश्रु की धार लगी है !

जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !

खामोश है अब शब्दों की गंगा
भावना जैसे नदी हुई है !

ज़ेहन ज्वाला सा फुट पड़ा है
ऐसी मुझमें अगन लगी है !

जाने कैसी तलब लगी है
अब तो कोई तलब नही है !

©gudiya जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !

होठों पर तो मुस्कान सजी और
आँखो में अश्रु की धार लगी है !

जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !
जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !

होठों पर तो मुस्कान सजी और
आँखो में अश्रु की धार लगी है !

जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !

खामोश है अब शब्दों की गंगा
भावना जैसे नदी हुई है !

ज़ेहन ज्वाला सा फुट पड़ा है
ऐसी मुझमें अगन लगी है !

जाने कैसी तलब लगी है
अब तो कोई तलब नही है !

©gudiya जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !

होठों पर तो मुस्कान सजी और
आँखो में अश्रु की धार लगी है !

जाने कैसी तलब लगी है
की अब तो कोई तलब नही है !
kumaribharti7980

gudiya

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