जाने कैसी तलब लगी है की अब तो कोई तलब नही है ! होठों पर तो मुस्कान सजी और आँखो में अश्रु की धार लगी है ! जाने कैसी तलब लगी है की अब तो कोई तलब नही है ! खामोश है अब शब्दों की गंगा भावना जैसे नदी हुई है ! ज़ेहन ज्वाला सा फुट पड़ा है ऐसी मुझमें अगन लगी है ! जाने कैसी तलब लगी है अब तो कोई तलब नही है ! ©gudiya जाने कैसी तलब लगी है की अब तो कोई तलब नही है ! होठों पर तो मुस्कान सजी और आँखो में अश्रु की धार लगी है ! जाने कैसी तलब लगी है की अब तो कोई तलब नही है !