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एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले जैसे दफ़्तर

एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले 
जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले 

रंग उखड़ जाए तो ज़ाहिर हो प्लस्तर की नमी 
क़हक़हा खोद के देखो तो तुम्हें आह मिले 

इक मुलाक़ात के टलने की ख़बर ऐसे लगी 
जैसे मज़दूर को हड़ताल की अफ़्वाह मिले #अधूरी#मुलाकातशायरी
एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले 
जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले 

रंग उखड़ जाए तो ज़ाहिर हो प्लस्तर की नमी 
क़हक़हा खोद के देखो तो तुम्हें आह मिले 

इक मुलाक़ात के टलने की ख़बर ऐसे लगी 
जैसे मज़दूर को हड़ताल की अफ़्वाह मिले #अधूरी#मुलाकातशायरी