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मेरी नई कविता,हो सके तो कविता की गहराई को समझना न

मेरी नई कविता,हो सके तो कविता की गहराई को समझना

ना नाम मेरा ना नक्श मेरा,
ना साँस मेरी,ना रक्त मेरा,
ना आंगन मेरा,ना घरौंदा मेरा,
ना पात मेरी,ना पौधा मेरा,
ना जमीन मेरी,ना अंबर मेरा,
ना झरना मेरा,ना सागर मेरा,
ना गलियाँ मेरी,ना शहर मेरा,
ना एक पल मेरा,ना पहर मेरा,
ना सरहद मेरी,ना वतन मेरा,
ना जंग मेरी,ना दुश्मन मेरा,
ना जात मेरी,ना मज़हब मेरा,
ना मै इस जग का,ना यह जग मेरा,

ना जीवन मेरा,ना मरन मेरा
ना माटी मेरी,ना कफन मेरा
ना रूह मेरी,ना जिस्म मेरा,
ना अल्लाह मेरा,ना कृष्ण मेरा,
ना मंदिर मेरा,ना मस्जिद मेरा,
ना पंडित मेरा,ना साजिद मेरा,
ना कुरान मेरी,ना ग्रंथ मेरा,
ना मोमिन मेरा,ना संत मेरा,
ना पूजा मेरी,ना सजदा मेरा,
ना नियम मेरे,ना फतवा मेरा,
कहता फिर क्यों है कि सब मेरा,
ना मै इस जग का,ना यह जग मेरा .

- Namit Raturi #poem #poetry #philosophy
मेरी नई कविता,हो सके तो कविता की गहराई को समझना

ना नाम मेरा ना नक्श मेरा,
ना साँस मेरी,ना रक्त मेरा,
ना आंगन मेरा,ना घरौंदा मेरा,
ना पात मेरी,ना पौधा मेरा,
ना जमीन मेरी,ना अंबर मेरा,
ना झरना मेरा,ना सागर मेरा,
ना गलियाँ मेरी,ना शहर मेरा,
ना एक पल मेरा,ना पहर मेरा,
ना सरहद मेरी,ना वतन मेरा,
ना जंग मेरी,ना दुश्मन मेरा,
ना जात मेरी,ना मज़हब मेरा,
ना मै इस जग का,ना यह जग मेरा,

ना जीवन मेरा,ना मरन मेरा
ना माटी मेरी,ना कफन मेरा
ना रूह मेरी,ना जिस्म मेरा,
ना अल्लाह मेरा,ना कृष्ण मेरा,
ना मंदिर मेरा,ना मस्जिद मेरा,
ना पंडित मेरा,ना साजिद मेरा,
ना कुरान मेरी,ना ग्रंथ मेरा,
ना मोमिन मेरा,ना संत मेरा,
ना पूजा मेरी,ना सजदा मेरा,
ना नियम मेरे,ना फतवा मेरा,
कहता फिर क्यों है कि सब मेरा,
ना मै इस जग का,ना यह जग मेरा .

- Namit Raturi #poem #poetry #philosophy
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Namit Raturi

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