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भिन्न-भिन्न अपराध से, भरे पड़े अखबार। आंँख मूंद



भिन्न-भिन्न अपराध से,
 भरे पड़े अखबार।
आंँख मूंद खामोश क्यों,
बैठी है सरकार।

©Tarun Rastogi kalamkar
  #अपराध#अखबार