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*अशान्तस्य कुतः सुखम्* अशांत मनुष्य के लिए सुख क


*अशान्तस्य कुतः सुखम्* 
अशांत मनुष्य के लिए सुख कहाँ!
~ भगवद्गीता 2.66
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सुख के पीछे भागते-भागते पूरा जीवन बीत जाता है
लेकिन सुख हमेशा दूर ही नज़र आता है

 *कारण?* 

श्रीकृष्ण स्पष्ट बताते हैं:
'शांति बिना सुख नहीं मिल सकता'
 *जीवन में सुख को नहीं, शांति को साधना है* 
यदि भीतर की महाभारत में शत्रु को हराना है

©कुमार रंजीत 
  सुख 
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