पर अच्छा है की सच सामने आया..... बात थी एक विश्वास की, उसके लौट आने की उम्मीद की, उसके इंतजार की..... था झूट का सर पे भार बहुत, अच्छा है की सच सामने आया...... वो था तो हमारे साथ पर फिर भी साथ नहीं, वो पास तो था पर फिर भी पास नहीं, अब ये यादों का खत्म हो जाना ही बेहतर है, उम्मीदों का मिट जाना ही बेहतर है! अब अधिकार हुए सारे खत्म, इंतेजार हुआ यही पर खत्म? अब बस यादों का एक खजाना है..... जिसमे भरे थे कुछ विश्वास और उम्मीद के रंग..... मुमकिन तो नही तेरा लौट आना.... पर अच्छा है की सच सामने आया, था झूट का सर पे भार बहुत............!...............!....... ©Sakshi Dongre sks#