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स्वरूप देख होती सुबह मेरी, रूप मनोरम देख होती शाम

स्वरूप देख होती सुबह मेरी,
रूप मनोरम देख होती शाम मेरी। 
तेरे ही गीत होठों को है भाते, 
तेरा ही भोग जिह्वा को अति प्यारा। 
तेरे कीर्तन में झूमू में रूम झूम,
पायल भी करती तब छम छम।

©Heer
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