विनती करत करत में हारी जीजी निर्दई ने मोरी एक न मानी.. न जाने कौन सो भूत चढ़ो थो , बाने करके छोड़ी मनमानी.. मोरी बिल्कुल इच्छा न हथी कैसे मोहे करि दिवानी.. मैं भूल गई सुध बुध अपनी, बाकी देख के कारस्तानी.. पहले मोरे हाथ धरे बाने फिर चूमि मोरी परेशानी, फिर कहां-कहां चूमो मोहे मैं पिघल के हो गई मोम का पानी.. " मनमानी"