लड़ के उस खुदा से भी मुकम्मल हर मुकाम कर लेती है । मेरी माँ की दुआ ही तो है जो मेरी हर हार को जीत में बदल देती है ।। सर गोद में उसकी रख लू तो सैर ए जन्नत हो जाए। गर पैर उसके छू लू तो पूरी मन्नत हो जाए।। हाथ सर पे मेरे रख के दामन खुशियों से भर देती है । मेरी माँ की दुआ ही तो है जो मेरी हर हार को जीत में बदल देती है ।। हर आहट पे मेरी जो यो झट से आ जाए । पल भर ना दिखे घर पे तो आफत सी छा जाए ।। धूप अगर मुझे लगे तो ऑचल से ढक लेती है । मेरी माँ की दुआ ही तो है जो मेरी हर हार को जीत में बदल देती है ।। एक शिकन भी चेहरे की उससे छिप नहीं पाती। ना जाने कैसे वो सब जान जाती।। कुछ ना कहूँ फिर भी वो सब कुछ समझ लेती है । मेरी माँ की दुआ ही तो है जो मेरी हर हार को जीत में बदल देती है ।। एहसास है मुझे अब तेरे हर एहसास का । तेरे हर बलिदान का तेरे हर त्याग का ।। जब से बोला है किसी ने माँ मुझे भी । जान पायी हू कि है तू बस खुदा ही।। औकात ना थी तुझपे एक अल्फ़ाज़ भी लिख पाने की तू तो बस यूँ ही मुझको हौसलों से भर देती है । मेरी माँ की दुआ ही तो है जो मेरी हर हार को जीत में बदल देती है ।। ......प्रीति शुक्ला dedicated to my mother