काश कभी ऐसा भी होता मैं दरवाज़े की खिड़की खोलती और तू हाथों में गुलाब लिए मेरे सामने खड़ा होता... ना मैं कुछ बोलती और ना ही तू भी कुछ बोल पता बस आंखों ही आंखों में इशारा होता, ठहर जाते यह वक्त वहीं पर जब तेरा और मेरा यूं मुलाकात होता, अल्फाजों में नहीं तेरे मेरे बीच आंखों ही आंखों में बाते होता, बढ़ जाते मेरे दिल की धड़कन जब तू मेरे सामने होता, हम दोनों के बीच यह दूरियां नहीं सिर्फ नज़दीकियां होता, हां काश कभी ऐसा भी होता मैं दरवाज़े की खिड़की खोलती और तू हाथों में गुलाब लिए मेरे सामने खड़ा होता... ©Lili Dey कास ऐसा होता