पागलपन के बिना हमारा प्यार अधूरा लगता है, बिन तेरे अपनेपन के संसार अधूरा लगता है वो बेवज़ह की बातों में हँसना रोना मेरे प्रियतम चंचलता में चिर चेतन थिर सार अधूरा लगता है प्रातः प्रेम की वादी में गुँजन वृन्दा के गीतों का, अक्षर की पयधारा का विस्तार अधूरा लगता है जीवन का हर क्षण तुमसे मधुरिम होता मेरे प्रियतम, नद्य सलिल के मिलन का नवश्रृंगार अधूरा लगता है "अधूरापन" यूँ तो अधूरा कुछ भी नहीं, नियती के निधान से सबकुछ पूरा ही है । पर यदि मुझे देह और तुम्हें देही मानें, तो हमारे मिलन के बिना सबकुछ अधूरा ही है ।। Much Love