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विस्तार हूँ मैं। हर छण छणिक हूँ मैं। हर छण बढ रहा

विस्तार हूँ मैं।
हर छण छणिक हूँ मैं।
हर छण बढ रहा हूँ।
मैं वायु सा हूँ हर छण बह रहा हूँ।
रुकता नहीं रुक जाऊँ तो फिर रहता नहीं।
सीमाओं से परे आसमान सा हूँ मैं।
अनियंत्रित विस्फोट हूँ।
हर पल हूँ बहता दरिया,
हर छण में विस्फोटित हूँ,
सीमाओं से परे ब्रह्माण्ड से भी बडा हूँ।
अनियंत्रित ऊर्जा हूँ,

मैं विस्तार हूँ।
आदि-अनादि, वर्तमान और भविष्य से परे,
असीमित हूँ,
मैं विस्तार हूँ । विस्तार हूँ मैं
विस्तार हूँ मैं।
हर छण छणिक हूँ मैं।
हर छण बढ रहा हूँ।
मैं वायु सा हूँ हर छण बह रहा हूँ।
रुकता नहीं रुक जाऊँ तो फिर रहता नहीं।
सीमाओं से परे आसमान सा हूँ मैं।
अनियंत्रित विस्फोट हूँ।
हर पल हूँ बहता दरिया,
हर छण में विस्फोटित हूँ,
सीमाओं से परे ब्रह्माण्ड से भी बडा हूँ।
अनियंत्रित ऊर्जा हूँ,

मैं विस्तार हूँ।
आदि-अनादि, वर्तमान और भविष्य से परे,
असीमित हूँ,
मैं विस्तार हूँ । विस्तार हूँ मैं

विस्तार हूँ मैं #कविता