तुलसीदास रामचरितमानस के बालकाण्ड में लिखते हैं कि शिव पार्वती ने विवाह रीति की शुरुआत, मुनियों के कहे अनुसार भगवान गणेश की पूजा करके की।
"मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।"
अब बड़ा अचरज ! विवाह हुआ ही नहीं था, भगवान गणेश का जन्म हुआ ही नहीं था, तब यह कैसे संभव ?
"कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि"
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