निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।। जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।। गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।। सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा।। ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।। तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा।। नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।। सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें।। उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।। गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।। अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।। Pic credit pinterest #sunderkand #sundarkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #devotional #bhakti