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तुम शायद किसी रूहानी ग़ज़ल सी, हर बार इक नए मायने

तुम शायद किसी रूहानी ग़ज़ल सी,
हर बार इक नए मायने के साथ।
जब भी पढ़ता हूं रहता हूं परेशान,
दर्द भी और दवा भी , और एक साथ। 
गम में देखू तो शुकून पड़ जाए,
जैसे प्यासे को पानी की बू पड़ जाए। 
जैसे किसी मुसाफिर को दिखे मंजिल
या किसी भटकी कश्ती को किनारा। 
खुश होकर जो देखू तो आंखे भर जाए,
ऐसा न हो की यह वक्त गुजर जाए।
तू मुझसे रूठे और गैर हो जाए।
......

©AshuAkela
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बहुत बाकी रहा जिंदगी का सफर
ashuakela5416

AshuAkela

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