राम और रावण की तुलना कर रहे हो! या हिमायत हो रही धनबल की दिल से। छल कपट और योग-हट से जो भी पाया! मूर्ख रावण ने उसे ही तो गंवाया। तुम सनक और शक्ति में अंतर तो समझो! राम अतुलित शील और पौरुष-पराक्रम। वेदना मानव के दिल में हो गई फिर- ढीठ बनकर लाख पुत्रों को मिटाया, दम्भ फिर भी प्रश्न पूछे श्रेष्ठता का! राम के चरणों की धूलि भी नहीं था, लाज रखली वृद्ध की बस श्रीराम ने सम्मान देकर। विष्णुपद छंद - नियम - चार चरण प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ , 16 - 10 पे यति , चरणांत में एक दीर्घ अनिवार्य । पामाल 'पराजित -पठ ' परंच , पासान रावरो । भ्रात नेह नाह से निर्विण्य , त्रस्त वह साँवरो ! ॥ हाहाह ! कथो बीर कवन है, अहं वा कातरो ? । 'सुवर्ण ऋक् महि ' प्रिय प्रिय कह बन, भटकता बावरो ? ॥