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फिसल रही ज़िन्दगी धूल सी लम्हा लम्हा, कुछ पूर्ण त

फिसल रही ज़िन्दगी धूल सी 
लम्हा लम्हा,
कुछ पूर्ण तो कुछ अपूर्ण सी
कोई जी रहा काल्पनिक ज़िन्दगी
कोई हकीकत से नजरें चुरा रहा
बिता रहा हर कोई अपनी उलझनों
में फंसा ज़िन्दगी,
कल की चिंता हर पल सताती
आज को अपने हर कोई
चिता समान तपिश में तप रहा,लम्हे कम 
ख़्वाब ज्यादा ज़िन्दगी को 
बड़ा बनाने की
कोशिश हर कोई कर रहा,

©भारतीय लेखिका तरुणा शर्मा तरु हमारी स्वरचित चित्र रचनाये 
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