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अरे सुनो.. तुम्हारी यादें अब फीकी होने लगी है आज

 अरे सुनो..

तुम्हारी यादें अब फीकी होने लगी है
आज चाय में मीठा कम लगा 
तुम्हें सोचते सोचते.... क्या करे जब भी चाय बनाती हूँ, 
तुम्हारा चेहरा सामने आ जाता हैं,
मैं भी कोशिश करती हुँ तुम्हारी जैसी मीठी बनने को,
इसलिए तो ये कम्बक्त चीनी ज्यादा डल जाता हैं।
पहले नही पीती थी चाय,
पर तुमने ये आदत भी डाल दी
अब जब नहीं हो तुम ,
तो उसी चाय में तुम्हारा साथ ढूढ़ती हूं।।
 अरे सुनो..

तुम्हारी यादें अब फीकी होने लगी है
आज चाय में मीठा कम लगा 
तुम्हें सोचते सोचते.... क्या करे जब भी चाय बनाती हूँ, 
तुम्हारा चेहरा सामने आ जाता हैं,
मैं भी कोशिश करती हुँ तुम्हारी जैसी मीठी बनने को,
इसलिए तो ये कम्बक्त चीनी ज्यादा डल जाता हैं।
पहले नही पीती थी चाय,
पर तुमने ये आदत भी डाल दी
अब जब नहीं हो तुम ,
तो उसी चाय में तुम्हारा साथ ढूढ़ती हूं।।