झुठी हँसी लिऐ होठो पर हसाता रहा सबको, यूँ ही मै तराश रहा था उस सख्श को, जो समझ सके मेरी मुस्कान मे छुपे गम को। अरसे बीत गये पर वो कहीं नजर ना आया, मुलाकात तो बहुतों से हुई राहों मे, पर कोई भी मेरे किरदार को समझ न पाया। मेरी आशा अब बौखला सी गयी थी, उस सख्श की तलाश अब थम सी गयी थी। फिर अचानक किसी नें जिंदगी में दस्तक दी, जिस सख्श को तलाश रहा था अरसों से, हुबहू वो वैसी ही निकली, जिसकी मैने कल्पना की थी। उसकी वो मासुम सी अदाऐं, वो प्यारा सा भोलापन। उसे देख याद आ जाता है, निश्छल, निष्पाप सा बचपन। मेरे जीवन का न जाने कब वो हिस्सा बन गया, पल पल मुस्कुराके जीने का वो किस्सा बन गया। मेरे गमगीन जिंदगी को खुशनुमा बनाने का फरिश्ता बन गया। ऐ दोस्त न जाने तुझसे ये कैसा रिश्ता बन गया। ।।शंकरदास।। हमसफर...सपनो का...हिस्सा जीवन का..