'धरोहर' (Read in caption) धरोहर.. हाँ यही नाम दिया है मैंने तुम्हारी यादों और तुम्हारे वादों को... यादों की अलमारी में मैंने रखे हैं वो सारे पल जो हमने साथ बिताए थे, वो लम्हे जो हमने साथ जिये थे, कुछ खट्टी सी शरारतें, कुछ मीठा सा एहसास, कुछ तीखी नोंक झोंक और कुछ कड़वे अनुभव भी...पर उन कसमों को नही रखा है मैंने जो हमने साथ जीने मरने की खाई थी, अब क्या है कि उन कसमों की कसक कहीं उन यादों पर भारी ना पड़ जाए..इसीलिए उसे मैं वहीं छोड़ आया जहाँ हम आखिरी बार मिले थे..अभी तक वही आखिरी है पर मुझे उम्मीद है शायद इस छोटी सी दुनिया मे फिर कभी मिलना हो जाए... हाँ वैसा मिलना नही हो पाएगा पर एक दूसरे को देखना भी तो किसी मिलन से कम नही है... पर मुझे ज्यादा प्यारी है वो वादों वाली अलमारी, क्योंकि वो बड़ी हल्की है उसे मैं अपने साथ कहीं भी ले जा सकता हूँ...कुछ ख़ास है नही उसमें फिर भी मुझे वही पसंद है..उसमें सिर्फ़ मैंने वो आख़िरी मुलाक़ात वाला वादा रखा है...वो वादा जो हमनें एक दूसरे से किया था..कभी एक दूसरे को ना भूलने वाला वादा..एक दूसरे से दूर रहकर भी ख़ुश रहने का वादा..क्योंकि इस वादे से पूरा होता है अपना वो सपना जो हमने देखा था... अरे वही अपने प्रेम को जिंदा रखने का सपना...देखो ना दोनों एक दूसरे को नही भूले और इस तरह अपना प्रेम हो गया ना अमर प्रेम....