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रात नदी-सी है रुकना नहीं है इसे, कोई रोक नहीं सकता

रात नदी-सी है
रुकना नहीं है इसे,
कोई रोक नहीं सकता इसे
बहती जाएगी
तारों की टिमटिमाहट
जल की निर्मलता लिए
कभी मौन, कभी कोलाहल करती
कभी सरसराती, कभी रेंगती
भोर के मुहाने से मिलकर
दिन के उजले सागर में विलीन होती है
वही दूधिया सागर 
दिन की धूप में तपकर
वाष्प होकर उड़ जाएगा
साँझ की चंचल मेघ
पुनः स्थापित करेगी
तभी तो रात की नदी
फिर से बहेगी
ये चक्र अनंत चलता रहेगा
जीव निर्जीव रहे न रहे
रात की नदी का बहना
तरंगिणी का अर्णव से मिलना
अनंत काल तक चलता रहेगा #night #travel #mukesh #diary #thoughts
रात नदी-सी है
रुकना नहीं है इसे,
कोई रोक नहीं सकता इसे
बहती जाएगी
तारों की टिमटिमाहट
जल की निर्मलता लिए
कभी मौन, कभी कोलाहल करती
कभी सरसराती, कभी रेंगती
भोर के मुहाने से मिलकर
दिन के उजले सागर में विलीन होती है
वही दूधिया सागर 
दिन की धूप में तपकर
वाष्प होकर उड़ जाएगा
साँझ की चंचल मेघ
पुनः स्थापित करेगी
तभी तो रात की नदी
फिर से बहेगी
ये चक्र अनंत चलता रहेगा
जीव निर्जीव रहे न रहे
रात की नदी का बहना
तरंगिणी का अर्णव से मिलना
अनंत काल तक चलता रहेगा #night #travel #mukesh #diary #thoughts