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तय किया है तन्हा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता, गिरकर ही उठा

तय किया है तन्हा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता,
गिरकर ही उठा हूँ मगर  आहिस्ता आहिस्ता।
दरों-दीवार को आँखों मे  बसा लिया है मैंने,
जाने कब छूट जाए घर  आहिस्ता आहिस्ता।
तुम्हें मेरी क़सम अब न  बंधन डालो मुझपर,
मैं खोलना चाहता हूँ पर आहिस्ता आहिस्ता।
सदीद धूप में  भी शज़र  की  चाह नही मुझें,
जहाँ थका  बैठूंगा उधर  आहिस्ता आहिस्ता। तुम्हें मेरी कसम (ग़ज़ल)

#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़
#जन्मदिनकोराकाग़ज़ 
#kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता 
#kkतुम्हेंमेरीक़सम 
#yourquotedidi
तय किया है तन्हा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता,
गिरकर ही उठा हूँ मगर  आहिस्ता आहिस्ता।
दरों-दीवार को आँखों मे  बसा लिया है मैंने,
जाने कब छूट जाए घर  आहिस्ता आहिस्ता।
तुम्हें मेरी क़सम अब न  बंधन डालो मुझपर,
मैं खोलना चाहता हूँ पर आहिस्ता आहिस्ता।
सदीद धूप में  भी शज़र  की  चाह नही मुझें,
जहाँ थका  बैठूंगा उधर  आहिस्ता आहिस्ता। तुम्हें मेरी कसम (ग़ज़ल)

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